विष्णु पुराण : प्रथम अंश: अध्याय 22: श्लोक 44-49
सब वस्तुओं का जो कारण होता है वही उसका साधन भी होता है, और जिस अपनी अभिमत वास्तु की सिद्धि की जाती है वही साध्य कहलाती है।
मुक्ति की इच्छा वाले योगीजनों के लिए प्राणायाम आदि साधन हैं और परब्रह्म ही साध्य है, जहाँ से लौटना नहीं पड़ता।
जो योगी की मुक्ति का कारण है वह साध्नालंबन ज्ञान ही उस ब्रह्मभूत परमपद का प्रथम भेद है।
क्लेश बंधन से मुक्त होने के लिए योगाभ्यासी योगी का सध्यारूप जो ब्रह्म है उसका ज्ञान ही आलंबन विज्ञान नामक दूसरा भेद है।
इन दोनों साध्य साधनों का अभेदपूर्वक जो अद्वैतमय ज्ञान है वह तीसरा भेद है।
उक्त तीनो प्रकार के ज्ञान का निराकरण करने पर अनुभव हुए आत्मस्वरूप के समान ज्ञानस्वरूप भगवान् विष्णु का जो अनिर्वचनीय , आत्मबोध स्वरुप अलक्षण रूप है वह ब्रह्म ज्ञान चौथा भेद है।
सब वस्तुओं का जो कारण होता है वही उसका साधन भी होता है, और जिस अपनी अभिमत वास्तु की सिद्धि की जाती है वही साध्य कहलाती है।
मुक्ति की इच्छा वाले योगीजनों के लिए प्राणायाम आदि साधन हैं और परब्रह्म ही साध्य है, जहाँ से लौटना नहीं पड़ता।
जो योगी की मुक्ति का कारण है वह साध्नालंबन ज्ञान ही उस ब्रह्मभूत परमपद का प्रथम भेद है।
क्लेश बंधन से मुक्त होने के लिए योगाभ्यासी योगी का सध्यारूप जो ब्रह्म है उसका ज्ञान ही आलंबन विज्ञान नामक दूसरा भेद है।
इन दोनों साध्य साधनों का अभेदपूर्वक जो अद्वैतमय ज्ञान है वह तीसरा भेद है।
उक्त तीनो प्रकार के ज्ञान का निराकरण करने पर अनुभव हुए आत्मस्वरूप के समान ज्ञानस्वरूप भगवान् विष्णु का जो अनिर्वचनीय , आत्मबोध स्वरुप अलक्षण रूप है वह ब्रह्म ज्ञान चौथा भेद है।