Friday 26 October 2012

श्री विष्णु पुराण : भगवान विष्णु का स्वरुप


प्रथम अंश : अध्याय 22 : श्लोक 68-74
इस जगत के निर्मल निर्गुण और निर्लेप आत्मा को अर्थात शुद्ध क्षेत्रज्ञ स्वरुप को श्री हरि कौस्तुभ मणि रूप से धारण करते हैं।
श्री अनंत ने प्रधान ( प्रकृति) को श्रीवत्स रूप से धारण किया है और बुद्धि श्रीमाधव की गदा रूप से स्थित है।
भूतों के कारण तामस अहंकार और इन्द्रियों के कारण राजस अहंकार इन दोनों को वे शंख और धनुष रूप से धारण करते हैं।
अपने वेग से पवन को भी पराजित करने वाला अत्यंत चंचल सात्विक अहंकार रूप मन श्री विष्णु भगवान् के कर कमलों में स्थित चक्र का रूप धारण करता है।
भगवान् गदाधर की जो पञ्चरूपा वैजन्ती माला है वह पंच्तान्मत्राओं और पंचभूतों का ही संघात है।
जो ज्ञान और कर्ममयी इन्द्रियां हैं उनको भगवान् जनार्दन बाण रूप से धारण करते हैं।
भगवान् अच्युत जो अत्यंत निर्मल खडग धारण करते हैं वह अविद्यामय कोष से आक्षादित विद्यामय ज्ञान ही है।
इस प्रकार पुरुष, प्रधान, बुद्धि , अहंकार, पञ्चमहाभूत, मन और इन्द्रियां , तथा विद्या और अविद्या सभी श्री भगवान् में आश्रित हैं।

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