Friday 28 December 2012

छान्दोग्य उपनिषद ( 3.12)

1. गायत्री ही यह सब भूत ( दृश्यमान ) है। जो कुछ भी जगत में प्रत्यक्ष दृश्यमान है वह गायत्री ही है। वाणी ही गायत्री है और वाणी ही सम्पूर्ण भूत है। गायत्री ही सब भूतों का गान करती है और उनकी रक्षा करती है।

2. जो यह गायत्री है वही सम्पूर्ण भूत है। यही पृथ्वी है, क्योंकि इसी में सम्पूर्ण भूत अवस्थित हैं। और इसका वे कभी उल्लंघन नहीं करते।

3. जो यह पृथ्वी है वह  प्राण रूप गायत्री ही है, जो पुरुष के शरीर में समाहित है। क्योंकि इसी में वह प्राण अवस्थित हैं। और इस शरीर का उल्लंघन नहीं करते।

4. जो भी पुरुष के शरीर में अवस्थित है , वही अन्तःह्रदय में अवस्थित है। क्योंकि इसी में वे प्राण प्रतिष्ठित हैं, और इस ह्रदय का वे उल्लंघन नहीं करते।

No comments:

Post a Comment