वह ( ब्रह्म ) पूर्ण है। यह ( जगत ) भी पूर्ण है। पूर्ण ब्रह्म से ही पूर्ण विश्व प्रादुर्भूत हुआ है। उस पूर्ण ब्रह्म से पूर्ण जगत निकल लेने पर पूर्ण ब्रह्म ही शेष रहता है। ॐ से संबोधित खं ( अनंत आकाश ) ब्रह्म है। आकाश सनातन है। जिस में वायु विचरण करता है वह आकाश ही खं है। यह ओमकार स्वरुप ब्रह्म ही वेद है। इस प्रकार ब्राह्मण जानते हैं। क्योंकि जो जान्ने योग्य है वह सब इस ओमकार रूप वेद से ही जाना जा सकता है। ( बृहद अरण्यक 5.1.1 )
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